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कंपनी का फंडामेंटल एनालिसिस कैसे करें ? Company Fundamentals in Hindi.

 
            दोस्तों, कंपनी का "स्वतंत्र अस्तित्व" माना जाता है। तो वास्तव में यह अस्तित्व क्या है यह हमें सही में मालूम होना चाहिये। यहाँ हम यह जानने की कोशिश करेंगे की, "कंपनी का फंडामेंटल एनालिसिस कैसे करें ? तो चलिए शुरू करते हैं। 
 
Company Fundamental Analysis.
Company fundamental analysis in Hindi.

            स्टॉक मार्केट में काम करने के लिए, कंपनी फंडामेंटल्स के बारें में सविस्तर जानकारी हासिल करना आवश्यक होता है। ताकि हम "लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट" करके अपने लिये पैसे कमाए।


    कंपनी

                हम सभी "Stock Market" में काम करने वाले अनुभवी लोग है। हमें कंपनी के बारें में जानकारी तो होती ही है। तो आइये एक समजदारी वाली बात पर, बस एक मोटा-मोटी नजर डालकर, आगे बढ़तें है। 

    कंपनी कायदा 1956 के अनुसार, कंपनी स्थापन होती है। और चलाई जाती है। कंपनी के सारे कार्य नियमों के अधीन होतें है।  

                जिस उद्योग में "बड़े कॅपिटल की जरूरत" होती है और "जोखिम ज्यादा होती है।वहां कंपनी तैयार करके उद्योग किया जाता है। इसका कॅपिटल छोटे-छोटे भाग (Share) में होता है। जो की Stock Market से उठाया जाता है।


    Stock Market 

                यहाँ "Stock Market" का संदर्भ इसी लिए लिया है क्योंकी कंपनी यहीं से "हमारा पैसा" उठाती है। और हम डालते जातें है, I.P.O. में और शेअर्स में भी। 

                कंपनी वह पैसा, बड़े और (ज्यादातर बार) "ज्यादा जोखिम वाले बिज़नेस" में लगातीं है। बिज़नेस चल गया तो हमारा पैसा बढ़ेगा! "बिज़नेस चला गया तो ?"  इसका कौन जिम्मेदार होता है। "क्या हम ?" क्यों की हमने पैसा लगाया ? क्या सच में!

                मतलब की जिम्मेदार तो हम खुद ही होतें है। पैसा लगाया इस लिए भी और कंपनी का स्टडी नहीं किया इस लिए भी। तो सीधी बात - "फंडामेंटल एनालिसिस करना जरूरी है।" है ना ?


    Company का फंडामेंटल एनालिसिस 

                कंपनी का कारोबार देश भर में फैला होता है। कई बार तो कारोबार देश-विदेशों में भी फैला होता है। ऐसे में हमें जानकारी लेने के लिए, विदेशों में जाकर, वहां के मार्केट की दुकानों में जाकर, कंपनी के कामकाज के बारें में जानना, क्या आसान होगा। 

                या फिर मान लो की कोयले की खदान की "कंपनी का कारोबार कैसे चल रहा है।" यह जानने के लिए, हर एक इन्वेस्टर, खदान में जा-जाकर ट्रकें गिनने लगे तो बस हो गया काम इनका। 

                तो क्या फंडामेंटल एनालिसिस इससे आसान नहीं है। धीरे-धीरे इसे समज़ने की समझ आ जाती है। हम यह पढ़ रहें है तो मतलब एकदम साफ़ है की यह किया जा सकता है। कहतें है की, जो हल्के-से कदम रखता है वह दूर तक चलता है। हमें Stock Market में दूर तक चलना है - तो हम इसे हल्के-से, आहिस्ता-से समज़ने की कोशिश करते जायेंगे। "फंडामेंटल एनालिसिस में कंपनी के कारोबार की सारी जानकारी होती है।यह जानकारी किसीने ऐसे ही नहीं दी होती है। इसके नियम-कानून होतें है। कंपनी का फंडामेंटल एनालिसिस याने की विश्लेषण दो भागों में करतें है।


    1) गुणात्मक विश्लेषण

    यह "कंपनी का क्वॉलिटेटिव्ह फंडामेंटल एनालिसिस" है। इसमें कंपनी के गुण-विशेष की विस्तार में जानकारी ली जाती है।


    कंपनी का बिज़नेस

    कंपनी क्या उद्योग करती है। 

    यह उद्योग कौन-से सेक्टर में आता है।

    उस सेक्टर में कॉम्पिटिशन कितना है। 

    बिज़नेस और सेक्टर में क़ानूनी हस्तक्षेप कितना है।   

    सेक्टर में कंपनी का मार्केट-हिस्सा कितना है। 

    कंपनी अपने मार्केट-हिस्से को बनाये रखने के लिए और बढ़ाने के लिए कितनी सक्षम है।


    कंपनी का मॅनेजमेंट 

    कंपनी के मॅनेजमेंट की कंपनी और उद्योग के बारें में क्या सोच है। वो अपने बिज़नेस, सेक्टर और ओवर-ऑल इकॉनोमी के विकास और दिक्क्तों के बारें में कितनी समझ रखतें है।

    कंपनी के मॅनेजमेंट का इस बिज़नेस को करने का अनुभव कितना है। 

    कंपनी के मॅनेजमेंट की निर्णय लेने की क्षमता और कार्य पूरा करने की क्षमता क्या है। 


    बिज़नेस मॉडेल 

    कंपनी का बिज़नेस मॉडेल याने की काम करने का तरीका क्या है। बिज़नेस मॉडेल को समज़ने से ही "कंपनी का फंडामेंटल एनालिसिस" करना आसान हो जाता है। 

    कंपनी की रचना के बारें में जानकारी ली जाती है। कंपनी की कार्य-पद्धति की जानकारी ली जाती है। 

    कंपनी किस मार्केट को याने की किन ग्राहकों को अपना मार्केट-लक्ष्य मानती है। 

    कंपनी का प्रोडक्शन, बिक्री करने की योजना क्या है ? इसकी जानकारी होतीं है। 


    वस्तू एवं सेवाँए 

    कंपनी का प्रोडक्ट क्या है। प्रोडक्ट में वह उत्पादन आता है, जो कंपनी तैयार करके बिक्री करती है। प्रोडक्ट में वस्तू और सेवांए भी शामिल होती है।

    कंपनी के प्रोडक्ट एवं सर्विसेस का "उपयोग क्या होता है।" 

    मार्केट में, इसके ऑप्शन के याने की पर्यायी प्रोडक्ट कितने है।

    प्रोडक्ट की क्वालिटी क्या है। मार्केट में नाम कितना है। 

    प्रोडक्ट एवं सर्विसेस की कीमत और मुनाफा क्या है।

    प्रोडक्ट एवं सर्विसेस का मार्केट-साइज क्या है। 

    कंपनी के आगे चलके नये प्रोडक्ट, सेवाँए लाने के बारें में क्या प्लान है।  

     

    2) संख्यात्मक विश्लेषण

    इसे "कंपनी का क्वान्टिटेटिव्ह फंडामेंटल एनालिसिस" कहतें है। कंपनी का संख्यात्मक विश्लेषण याने की आँकड़ों में कंपनी की स्थिती जानना। इसमें "फायनांशियल स्टेटमेंट्सदेखे जातें है। 


    प्रॉफिट अँड लॉस स्टेटमेंट 

                इस स्टेटमेंट में कंपनी के Income, Expenses और प्रॉफिट या लॉस को दिखाया जाता है। P & L स्टेटमेंट विशिष्ट टाइम पीरियड का होता है। जैसे की महीने का, 3 महीने का, साल भर का। ठीक है ? कंपनी के सारे व्यवहार के बारें में जानकारी इस स्टेटमेंट में होती है। 

                कंपनी किन- किन माध्यमों से "कितना इनकम कमाती है।" कंपनी की सेल्स कितनी है। ओदर इनकम कितनी आई है। यह इनफार्मेशन होती है।

                कंपनी ने इनकम कमाने के लिए "कितना खर्चा किया है।" किन-किन चीजों के लिए किया है। ऑपरेशन्स के लिए किस तरह से खर्चा किया है। इन सारी बातों का ब्योरा इस स्टेटमेंट में होता है।      

                कंपनी ने अपने खर्चों से ज्यादा कमाया है तो वह प्रॉफिट दिखाया जाता है। इससे "कंपनी फंडामेंटल्स स्ट्रॉन्ग" दिखतें है। और अगर कंपनी के खर्चे कमाई से ज्यादा है तो यह लॉस दिखाया जाता है। इससे "कंपनी फंडामेंटल्स कमजोर" दिखतें है।

                प्रॉफिट अँड लॉस अकाउंट से यह जानकारी मिलती है "कंपनी की प्रॉफिट कमाने की क्षमता कैसी है।" 


    बैलेन्स शीट     (Balance Sheet)

                इसमें कंपनी की कॅश, असेट, कॅपिटल, देनदारी की जानकारी होती है। कंपनी के देनदारी और प्रॉपर्टी का संतुलन इसमें दिखाया जाता है। बॅलन्स शीट विशिष्ट समय-अवधि के आर्थिक स्थिति दर्शता है। यह टाइम पीरियड  प्रॉफिट अँड लॉस स्टेटमेंट की तरह ही होता है। 

     

    Balance Sheet Example
    Balance Sheet Example

    बॅलेन्स शीट का ढाँचा     (Structure of Balance Sheet)

    बॅलेन्स शीट में  दो तरह की जानकारियाँ होती है। इससे इसे दो हिस्सों में दिखाया जाता है।

    असेट साइड     (Asset Side)

                असेट साइड में कंपनी के "मालमत्ता की जानकारी" होतीं है। यह मालमत्ता याने की ऐसी चीजें होती है जो की कंपनी के निवेश और काम से जुडी होतीं है। कंपनी का कारोबार जैसा होगा वैसी उसकी असेट होगी। और वैसे भी IT कंपनी के बॅलेन्स शीट में बड़ी-बड़ी ट्रकें तो नहीं दिखायेंगे। है ना?

                अच्छा,तो कंपनी बॅलेन्स शीट के असेट साइड में कंपनी के कारोबार की साधन-सामग्री को दिखाया जाता है।


    करंट असेट     (Current Asset)

                करंट असेट में इन चीजों का समावेश होता है। कंपनी प्रोडक्शन, डिस्ट्रीब्यूशन, सेल्स का काम करतीं है। तो कई सारे चीजों की आवश्यकता पड़ती है। इस असेट को प्रसंग के अनुसार जरूरत पड़ने पर इस्तेमाल करने के लिये बनाया जाता है।   
     

    कॅश     (Cash)

                कॅश कंपनी के पास है वह और बॅंक अकाउंट में है वह। कंपनी अपने रोजमर्रा के कामकाज के लिए कॅश कॅरी करती है। आज के ऑनलाइन जमाने में यह जरूरत कम हुई है। तो "कॅश एट बॅंक" की जानकारी यहाँ होतीं है।

     

    शॉर्ट टर्म इन्वेस्टमेंट 

                याने की थोड़े समय के लिये कहीं पर पैसा लगाया है उसका हिसाब। एक साल या उससे भी कम समय के लिए कंपनी ने पैसा ब्याज पर दिया हो। और इस तरह के निवेश यहाँ दिखाये जातें है। 

     

    रिसीव्हेबल्स     (Receivables)

                याने की वह कॅश होतीं है जो की कुछ ही दिनों में आने वाली होतीं है। जिसका हिसाब इसी साल होना है। 


    प्रीपेड़ एक्सपेंसेस     (Prepaid Expenses) 

                याने की ऐसे खर्चे जो की किये गये है अगले साल के लिए। जैसे की "एडव्हान्स पेमेन्ट ऑफ़ टॅक्स।" यह रकम कंपनी ने टॅक्स के रूप में समय से पहले दे दी है। तो आगे चलके वह खर्चा दोबारा नहीं होने वाला है। इसलिए यह करंट असेट कहलाती है। और "एडव्हान्स पेमेन्ट ऑफ़ बिल्स" याने की किसी काम को थर्ड पार्टी से कराने के लिए कुछ रकम काम शुरू करते वक्त देनी होतीं है। यह भी असेट ही मानी जातीं है।

     

    फिक्स्ड असेट     (Fixed Asset)

                इसे लॉन्ग टर्म असेट भी कहा जाता है। इस तरह की असेट कंपनी अपने नियमित उपयोग के लिये बनाती है। फिक्स्ड असेट में इन चीजों का समावेश होता है।


    लॅंड     (Land)

                कंपनी ने प्लान्ट के लिए जमीन ले रखी है। जाहिर है वह असेट मानी जाएगी। कंपनी कई बार जमीन खरीद करतीं है। भाव बढ़ने पर बेचने के लिए या उस पर लोन लेने के लिये।


    बिल्डिंग     (Building)

                कंपनी अपना कारोबार चलाने के लिए बिल्डिंग बनाती है तो उसे बॅलेन्स शीट में असेट के तौर पर दिखाया जाता है। बिल्डिंग की कीमत से "डिप्रिसिएशन" की रकम घटाई जाती है। यहाँ पर किराये पर लिये हुए बिल्डिंग का जिक्र नहीं होता। किराये का खर्चा प्रॉफिट अँड लॉस अकाउंट में दिखाया जाता है।


    मशिनरी     (Machinery)

                बड़े पैमाने पर प्रोडक्शन करने के लिए काफी महँगी मशिन्स लगानी होतीं है। यह कंपनी की असेट होती है। मशीनरी हर कंपनी के जरूरत के हिसाब से अलग-अलग होतीं है। इनका जिक्र बॅलेन्स शीट में किया जाता है। और  साल भर उसका इस्तेमाल किया गया है तो डिप्रिसिएशन की रकम मशीनरी की कीमत से घटाई जाती है।     


    लॉन्ग टर्म इन्व्हेस्टमेंट 

                कंपनी ने कोई लॉन्ग टर्म निवेश किया है। इसका हिसाब होता है। "दूसरी कंपनियों के शेअर्स में किया गया निवेश" इसमें दिखाया जाता है।

       

    ओदर असेट     (Other Asset)

                ओदर असेट में कंपनी की ऊपर के अलावा और कौन-कौनसी असेट है इसकी जानकारी होती है। इसमें, कंपनी के चालू बिज़नेस से रिलेडेट नहीं होने वाली असेट का जिक्र होता है।


    पेटेन्ट     (Patent)

                कंपनी के पास कोई पेटेन्ट या ऐसी ही कोई इंटेलेक्च्युअल प्रॉपर्टी है तो यहाँ दिखायी जातीं है। यह महत्वपूर्ण असेट मानी जाती है। इससे कंपनी को मार्केट में कॉम्पीटेटीव्ह अड़व्हांटेज मिलता है। 

     

    दृश्य मालमत्ता     (In-tangible Asset) 

                याने की ऐसी असेट होतीं है जिसे महसूस किया जा सकता है अपने नॉलेज से। लेकिन उसे देखा या छुआ नहीं जा सकता।

     

    गुडविल     (Goodwill)

                गुडविल याने की कंपनी की पहचान होती है। "कंपनी की प्रतिष्ठा" होती है। कंपनी का गुडविल कैसे निकालते है ? इसकी जानकारी हम यहीं से दूसरे पेज पर जाकर पढ़ सकतें है। और फिर यहाँ कंटीन्यू कर सकतें है। तो चलिए आगे बढ़तें है। 

     

    लायबिलिटीज साइड     (Liabilities Side)

                इस साइड पर कंपनी के कर्ज की और शेअर कॅपिटल की जानकारी होतीं है। लायबिलिटीज के हिस्से को बारीकी से समजना होता है। इसमें कंपनी ने पैसों का इंतजाम किन तरीकों से किया है इसकी जानकारी होतीं है।

                "Stock Market" में निवेश करते वक्त, अपना पोर्ट-फोलियो बनाते वक्त हम "डेब्ट-फ्री कंपनी" को चुनना ज्यादा पसन्द कर सकते है। और ऐसा करना भी चाहिये। लेकिन फंडामेंटल एनालिसिस के अनुसार मजबूत कंपनी ने, फ्यूचर में ग्रोथ को हासिल करने के लिए, स्ट्रैटेजी बनाकर लोन लिये होंगे तो वह आगे चलके आने वाली डिमांड को सप्लाई कर सकती है। और अच्छी ग्रोथ हासिल कर सकती है। तो ऐसा कहा जा सकता है की "लोन अच्छे है।" इस तरह की सारी जानकारी हम इन्व्हेस्टिंग इंडिया से लें सकतें है।


    लॉन्ग टर्म लायबिलिटीज 

                याने की "दीर्घ कालावधी के लिए लिये गये कर्ज" होतें है। यह देनदारी लम्बे समय के विकास के लिए, इंफ़्रास्ट्रक्चर के उपयोग में लायी जातीं है। अपना कारोबार बढ़ाने के लिए, नये प्रोडक्ट्स बनाने के लिए, देश-विदेशों में व्यापार करने के लिए, नयी मशीनरी में, टेक्नोलॉजी में निवेश करने के लिए इस तरह के लोन लिये जातें है। इसका समयावधि दस सालों से भी ज्यादा का हो सकता है। यह लोन बॅंक, शेअर होल्डर्स या प्रमोटर्स से लिया होता है। साथ ही टैक्स की देनदारी जो की लम्बे समय से पेंडिंग है,वह दिखायी जाती है।

     

    करंट लायबिलिटीज 

                यह एक साल से कम समय की देनदारी होती है। इन्हे कुछ समय बाद चुकाना होता है। तब तक बॅलेन्स शीट बनाने का वक्त आता है। और इनको बॅलेन्स शीट में जगह मिल जाती है। 


    शॉर्ट टर्म लोन     (Short Term Loan)

                यह कम समय के लोन होतें है। कंपनी को अपना कारोबार चलाने के लिए छोटे-मोटे लोन लेने पड़ते है। कंपनी कच्चा माल खरीदने के लिए, प्रोसेस के लिए, प्रोडक्शन के संबंधित ख़र्चों को चलाने के लिए शॉर्ट टर्म लोन लेती है। इसका जिक्र बॅलेन्स शीट में किया जाता है।

     

    टॅक्स देय     (Tax Payable)

                कंपनी को टॅक्स देना बनता है। मगर अभी तक दिया नहीं है। ऐसे पेंडिंग टॅक्स का हिसाब यहाँ दिखाया जाता है। यह एक तरह से देनदारी ही होतीं है। 


    क्रेडिटर्स     (Creditors)

                इसमें कंपनी के व्यापार संबंधित क्रेडिटर्स का जिक्र किया जाता है। पेन्डिंग बिल्स जो की अभी तक याने की बॅलेन्स शीट बनाते वक्त तक चुकाये नहीं है। जैसे की उधारी पर लाया गया माल की रकम, विज्ञापन के बिल्स। 

     

    ओदर लायबिलिटीज     (Other Liabilities)

                कंपनी को और किसी खास किस्म की छोटी-मोटी देनदारी है तो उसे ओदर लायबिलिटीज कह के दिखाया जाता है। और वैसे भी हर एक देनदारी का जिक्र नाम गिनवा के, हम भी तो घर वालों के सामने नहीं करतें है। है ना ?


    रिज़र्व और सरप्लस 

                कंपनी अपने कॅपिटल का और नेट प्रॉफिट का कुछ हिस्सा सेव्ह करके रखतीं है। उसे रिज़र्व और सरप्लस कहते है। कंपनी के पास रिज़र्व और सरप्लस होना बहुत जरुरी होता है। इससे कंपनी का गुड विल बढ़ता है। 


    कॅपिटल रिज़र्व     (Capital Reserve) 

                यह शेअर धारकों से इकट्ठा किये गये कॅपिटल का कुछ हिस्सा  होता है। जो की कंपनी ने खर्च ना करते हुए रखा है। यह पैसा निवेशकों को वापिस देना नहीं होता है पर यह एक देनदारी ही होती है। यह पैसा खास मौकों के लिए बचाकर रखा हुआ होता है। 


    जनरल रिज़र्व     (General Reserve)

                यह रही एक खास बात रिज़र्व और सरप्लस! कंपनी ने प्रमोटर्स और शेअर होल्डर्स को पूरा प्रॉफिट डिव्हीडंड के रूप में ना देते हुए कुछ प्रॉफिट रिजर्व करके रखा होता है। और कंपनी हर साल इसमें कुछ ना कुछ डालती रहतीं है। 

                यह कंपनी ने बाजू में रखा पैसा होता है। जो की बांटा नहीं है। तो यह तो देनदारी ही हुई ना? इसलिए इसका जिक्र लायबिलिटीज साइड में आता है।


    सरप्लस     (Surplus)

                सरप्लस याने की पिछले साल के बॅलेन्स शीट की बची हुई रकम इस साल के बॅलेन्स शीट में दिखाई जाती है। यह सरप्लस का ओपनिंग बॅलेन्स होता है। इस तरह से सलग्नता बनती है। अगला-पिछला हिसाब सही से लग पाता है।

                इस साल का मुनाफा जो की डिव्हीडंड देने के बाद बचा है, वह सरप्लस में जोड़ा जाता है। अब यह रिज़र्व और सरप्लस की रकम अगले साल  बॅलेन्स शीट में दिखाई जायेगी। 


    शेअर कॅपिटल     (Share Capital)

                कंपनी का शेअर कॅपिटल याने की प्रमोटर का पैसा और स्टॉक मार्केट से उठाया गया निवेशकों का पैसा। सही है? तो यह पैसा कंपनी का खुद का नहीं होता है। जैसे की बॅंक से लिया गया पैसा देनदारी होती है। उसी पैमाने पर यह भी देनदारी ही होतीं है। 

                    कंपनी ने जो भी असेट खरीदी है वह खरीदने के लिए पैसा कहाँ से आया। तो जवाब में कंपनी कहतीं है यह इन्व्हेस्टर का पैसा है। इसके जिक्र से "बॅलेन्स शीट में बॅलेन्स बनता है।" वरना प्रॉपर्टी ज्यादा दिखेंगी और हिसाब नहीं लग पायेगा की यह ज्यादा की प्रॉपर्टी कहाँ से आयी है। स्टॉक मार्केट में निवेश के लिए बॅलेन्स शीट की जानकारी कैसे समझें। यह जानने के लिए हम यहीं से दूसरे पेज पर पढ़ सकतें है। और फिर यहाँ कंटीन्यू कर सकतें है।                             

      

    कॅश फ्लो स्टेटमेन्ट 

                इसमें कंपनी के कॅश की कार्य-प्रणाली दिखती है - की "कॅश किस प्रकार आई और किस प्रकार गई।" तो जैसा की नाम से ही पता चलता है की पैसा किस तरह से घुमा है इसकी जानकारी इस स्टेटमेंट से मिलती है। शुरूआती कॅश और नेट इनकम दिखाया जाता है। और किन खर्चों के लिए कितना पैसा इस्तेमाल किया गया वह दिखाया जाता है।      


                इस तरह से पूरा फंडामेंटल एनालिसिस करने से किस कंपनी की आर्थिक स्थिती ज्यादा अच्छी है। यह जानकारी मिलती है।


    कंपनी के फंडामेंटल एनालिसिस के फायदें

                कंपनी का फंडामेंटल एनालिसिस करने के कई सारे फायदे है। इनमें से महत्वपूर्ण फायदे यह है कि इसे करके हम स्टॉक मार्केट बिहेवियर को समझ सकतें है। स्टॉक मार्केट में करियर तो हम अपना जॉब करते-करते कर ही सकते है। लेकिन अगर हमें "फुल टाइम ट्रेडर" बनना है तो भी कंपनी का फंडामेंटल एनालिसिस करना फायदेमंद होता है। 


    कंपनी के फंडामेंटल एनालिसिस के बारें में मने यह जाना

                हमने यह जाना की "कंपनी का फंडामेंटल एनालिसिस कैसे करें। Fundamentals of Company की जानकारीकितनी महत्वपुर्ण होतीं है। इसका स्टडी करके हम, Stock Market में, अच्छे क्वालिटी के शेअर में, लम्बे समय तक बने रहकर, मुनाफा कमा सकतें है। 


    आपके लिए महत्वपूर्ण जानकारी 




    कंपनी फंडामेंटल्स के FAQs 

    1 ) कंपनी फंडामेंटल एनालिसिस क्या होता है ?

    कंपनी का फंडामेंटल एनालिसिस याने के कंपनी के आर्थिक स्थिति की पड़ताल करना होता है।

    2 ) कंपनी का फंडामेंटल एनालिसिस कैसे चेक करें ?

    कंपनी का फंडामेंटल एनालिसिस, फाइनेंशियल डॉक्यूमेंट्स के द्वारा चेक किया जाता है।

    3 ) कंपनी के फंडामेंटल एनालिसिस के पाँच स्तर कौन से हैं ?

    कंपनी फंडामेंटल एनालिसिस के पाँच स्तर 1) कंपनी प्रोडक्ट एनालिसिस, 2) इंडस्ट्री एनालिसिस, 3) मार्केट एनालिसिस, 4) मैनेजमेंट एनालिसिस और 5) प्रोफिटेबिलिटी एनालिसिस यह है।

    4 ) क्या स्टॉक मार्केट में निवेश करने के लिए फंडामेंटल एनालिसिस करना जरुरी होता हैं ?

    जी हाँ, स्टॉक मार्केट में निवेश करने के लिए फंडामेंटल एनालिसिस करना जरुरी होता हैं।

    5 ) क्या ट्रेडिंग करने के लिए कंपनी का फंडामेंटल एनालिसिस करना जरुरी होता हैं ?

    नहीं, बल्कि, ट्रेडिंग करने के लिए टेक्निकल एनालिसिस करना जरुरी होता हैं।

     


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