दोस्तों, आज हम यहां पर मिलकर, "ऑप्शन ट्रेडिंग में टाइम डीके क्या होता है ? टाइम डीके पर सोल्युशन क्या है ? Option Trading Time Decay in Hindi." इसके बारे में हिंदी में जानकारी लेंगे। इसमें ऑप्शन ट्रेडिंग में टाइम डीके क्या होता है ? ऑप्शन के प्रीमियम और टाइम डीके में क्या संबंध होता है ? और टाइम डीके हो सकने वाले नुकसान से बचने के लिए बेस्ट सोल्यूशन क्या हो सकता है ? इसके बारे में जानकारी लेंगे।
और बैंक निफ़्टी ऑप्शन ट्रेडिंग में टाइम डीके पर सोल्यूशन देखेंगे। इस सोल्यूशन का उपयोग कैसे करना है ? यह जानेंगे। तो आइए शुरू करते हैं।
Stock Market Options Time Decay. |
इस पर गौर करें कि, ऑप्शन कांट्रैक्ट्स एक्सपायरी डेट के अनुसार बनाए जाते हैं। इसलिए एक्सपायरी डेट तक का समय ऐसे कॉन्ट्रैक्ट में महत्वपूर्ण भूमिका बजाता है।
ऑप्शन ट्रेडिंग में टाइम डीके क्या होता है ?
टाइम डीके में दो शब्द है एक टाइम और दूसरा डीके। सही है ? और इसमें Time का मतलब होता है - समय और Decay का मतलब होता है - खत्म होना। अब हम इन दोनों शब्दों को जोड़कर देखते हैं तो, "टाइम डीके का हिंदी में मतलब समय का खत्म होना यह निकलता है।" अब हम स्टॉक मार्केट ऑप्शन ट्रेडिंग में समय खत्म होने का क्या मतलब निकलता है इसके बारे में समझ लेते हैं।
"गुजरते समय के साथ ऑप्शन प्रीमियम के भाव कम होते जाते हैं उसे टाइम डीके कहते हैं।"
विशेष जानकारी
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ऑप्शन के प्रीमियम और टाइम डीके का संबंध
ऑप्शन प्रीमियम = टाइम वैल्यू + इंट्रिसिक वैल्यू
टाइम वैल्यू
ऑप्शन राइटर को यानि के सेलर को ऑप्शन सेलिंग में असाधारण जोखिम का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए उसे एक्सपायरी डेट तक के समय की जोखिम के लिए मुआवजा दिया जाता है। इसे टाइम वैल्यू कहते हैं।
इंट्रिसिक वैल्यू
इंट्रिसिक वैल्यू यह किसी शेयर के, इंडेक्स के ऑप्शन की असली वैल्यू होती है। लेकिन यह पूरी वैल्यू नहीं होती है। इसके साथ टाइम वैल्यू को जोड़कर ऑप्शन की प्रीमियम बनती है।
ऑप्शन बायर्स के लिए संभावना
ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट के खरीददार को दो प्रकार की संभावनाओं में से रिजल्ट प्राप्त हो सकता है।
ऑप्शन का मनीनेस = मुनाफे की संभावना
ऑप्शन बायर ने खरीदा हुआ ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट, एक्सपायरी डेट से पहले इन द मनी स्ट्राइक प्राइस बन जाता है तो उसके प्रॉफिट होने की संभावना होती है। इसे ऑप्शन का मनीनेस कहते है।
ऑप्शन का टाइम डीके = नुकसान की संभावना
ऑप्शन बायर ने खरीदा हुआ ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट, एक्सपायरी डेट से पहले आउट ऑफ़ द मनी स्ट्राइक प्राइस बन जाता है तो उसे नुकसान होने की संभावना होती है। इसे ऑप्शन का टाइम डीके कहते है। Option Chain Strike Price की विशेष जानकारी यहीं से दूसरे पेज पर जाकर पढ़ सकते हैं और फिर यहां पर कंटिन्यू कर सकते हैं। तो चलिए आगे बढ़ते हैं।
"यह सब निर्भर करता है एक्सपायरी डेट तक के समय पर।" इस समय के दौरान स्टॉक मार्केट लिक्विडिटी कम होने के कारण या किसी भी कारण से बड़े मूवमेंट्स नहीं होते हैं तो समय अपना रोल निभाता है। ऑप्शन के प्रीमियम कम होते जाते हैं। इसका फायदा ऑप्शन राइटर यानि के सेलर को होता है।
टाइम डीके पर बेस्ट सोल्युशन क्या हो सकता है ?
1 ) मंडे - बैंकेक्स ऑप्शन्स में ट्रेड नहीं करना है।
2 ) ट्यूसडे - फिन निफ़्टी ऑप्शन्स में ट्रेड नहीं करना है।
3 ) वेडनेसडे - बैंक निफ़्टी ऑप्शन्स में ट्रेड नहीं करना है।
4 ) थर्सडे - निफ़्टी ऑप्शन्स में ट्रेड नहीं करना है।
5 ) फ्राइडे - सेन्सेक्स ऑप्शन्स में ट्रेड नहीं करना है।
टाइम डीके से ऑप्शन के खरीददार को नुकसान होने की संभावना होती है। ऐसे नुकसान को कम करने के लिए बेस्ट सोल्युशन क्या हो सकता है ? ऊपर दिए गए पॉइंट्स के साथ जवाब में कहते हैं कि, ऑप्शन खरीददार को ऑप्शन खरीदने से पहले अंडरलेइंग एसेट याने कि, शेयर हो या इंडेक्स हो। उसके चार्ट का टेक्निकल एनालिसिस बढ़िया तरीके से करना आना चाहिए।
2 ) स्टॉक मार्केट के प्रमुख इंडेक्स के ऑप्शन में ट्रेडिंग करने के लिए स्टॉक मार्केट का डीपली नॉलेज होना आवश्यक होता है। किसी भी सेक्टोरियल इंडेक्स या किसी भी शेयर के ऑप्शन ट्रेडिंग में टाइम डीके से बचने के लिए पर्याप्त फंडामेंटल एनालिसिस करना आवश्यक होता है।
हम यहां पर टाइम डीके की वजह से हो सकने वाले नुकसान से बचने के लिए एक सोल्यूशन पेश करने जा रहे हैं। इससे पहले हम यहां पर बैंकिंग सेक्टर के प्रमुख इंडेक्स बैंक निफ़्टी के Time Decay के बारे में समझ लेते हैं।
बैंक निफ़्टी ऑप्शन ट्रेडिंग मे टाइम डीके
बैंकिंग सेक्टर की प्रमुख, बड़ी प्राइवेट और पीएसयू 12 बैंक्स को मिलाकर बैंक निफ़्टी इंडेक्स बनाया है। यह इंडियन स्टॉक मार्केट का सबसे तेज गति से मूवमेंट करने वाला इंडेक्स है।
बैंक निफ़्टी Option Chain Volume के कारण इसके ऑप्शन में बहुत ही बढ़िया लिक्विडिटी होती है। इसलिए इनमें इंट्राडे ट्रेडिंग करके बढ़िया मुनाफा कमाया जा सकता है।
हम सभी ने इस बात पर जरूर गौर किया होगा कि, अगर हम बैंक निफ़्टी का कॉल ऑप्शन लेते हैं और कुछ वक्त के लिए बैंक निफ़्टी का चार्ट थोड़ा सा भी नीचे जाता है तो वापिस उसी लेवल पर आने पर भी ऑप्शन के प्रीमियम उतना रिकवर नहीं कर पाते हैं। है ना ?
ऐसा ही बैंक निफ़्टी पुट ऑप्शन बाइंग के ट्रेड में भी होता है। अगर हम बैंक निफ़्टी का पुट ऑप्शन लेते हैं और कुछ वक्त के लिए बैंक निफ़्टी का चार्ट ऊपर जाकर वापिस उसी लेवल तक निचे आने पर भी ऑप्शन के प्रीमियम उतना रिकवर नहीं कर पाते हैं। ऐसा ज्यादातर बार एक्सपायरी डेट के नजदीकी दिनों में याने कि, वेनसडे और थर्सडे के ट्रेडिंग सेशन में होता है।
दोस्तों, ऐसा इसलिए होता है क्योंकि, "बैंक निफ्टी ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट के प्रीमियम टाइम डीके की वजह से कम होते हैं।" और बैंक निफ़्टी का चार्ट वापिस उस पर्टिकुलर लेवल को अचीव करता है फिर भी ऑप्शन के प्रीमियम वापिस अपनी प्राइस को अचीव नहीं कर पाते हैं।
टाइम डीके पर सोल्यूशन
अब हम यहां पर बैंक निफ़्टी ऑप्शन ट्रेडिंग में टाइम डीके की वजह से हो सकने वाले नुकसान से बचने के सोल्यूशन के बारे में जानकारी लेंगे।
"अपने ट्रेड्स की समय सीमा तय करनी चाहिए। जी हाँ, बिल्कुल सही समझे हो आप !" हमें ट्रेड लेने से पहले ट्रेड का वक्त तय करना चाहिए।
ट्रेड के लिए हम टार्गेट और स्टॉप लॉस तय करते है। ट्रेड का वह मूवमेंट होने का कालावधि भी तय करना चाहिए।
1 ) ओपनिंग के ट्रेड्स के लिए 15 मिनिट का कालावधि पर्याप्त हो सकता है।
2 ) फर्स्ट हाफ के ट्रेड्स के लिए मैक्सिमम 2 घंटो का कालावधि ठीक रहेगा।
3 ) सेकंड हाफ के ट्रेड्स के लिए 1 घंटे का कालावधि ठीक रहेगा।
निर्धारित कालावधि में ट्रेड का मूवमेंट ना होने पर ट्रेड क्लोज कर देना बेहतर होता है।
महत्वपूर्ण बात
हम चार्ट के 5 मिनिट टाइम फ्रेम पर ट्रेडिंग करते है तो हो सकता है की ऐसा करना मुश्किल लगे। यदि हम 15 मिनिट टाइम फ्रेम पर ट्रेडिंग करेंगे तो यह अपने आप मुमकिन हो सकता है।
हमारा विश्वास है कि, चार्ट पर बन रहे मूवमेंट्स के बारे में समझ कर टाइम डीके की संभावना को टाल सकते हैं। इससे हो सकने वाले नुकसान से बचकर बैंक निफ़्टी ऑप्शन ट्रेडिंग में हम बेहतर परफॉर्मेंस कर सकते हैं।
टाइम डीके के सोल्युशन का उपयोग
इस पर ध्यान दें कि, Stock Market Derivatives में ट्रेडिंग करने के लिए हमारे पास दो स्ट्रैटेजीस होनी चाहिए। हमारी रेगुलर ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी के अनुसार ट्रेड्स फाइंड करना है। और दूसरी स्पेशल स्ट्रैटेजी से सेकंड ओपिनियन लेना चाहिए।
अपनी स्ट्रेटेजी के द्वारा फाइंड किए गए ट्रेड्स को क्रॉस चेकिंग जरूर करना चाहिए। इससे "कंसोलिडेशन" जैसी परिस्थितियों में ट्रेडिंग करने से बचकर हम ऑप्शन प्रीमियम के टाइम डीके के कारण हो सकने वाले नुकसान से बच सकते हैं।
हमने यह जाना
हमने यहां पर मिलकर, "ऑप्शन ट्रेडिंग में टाइम डीके क्या होता है ?" इसके बारे में डिटेल में जानकारी ली। इसमें हमने ऑप्शन के प्रीमियम और टाइम डीके के संबंध के बारे में जाना। ऑप्शन ट्रेडिंग में ऑप्शन बायर के लिए कौन-कौन सी संभावनाएं बन सकती है इसके बारे में समझ कर टाइम डीके पर बेस्ट सलूशन क्या हो सकता है यह जाना।
हमारा ऐसा मानना है कि, यह जानकारी बैंक निफ़्टी के ऑप्शन ट्रेडिंग में हेल्पफुल साबित हो सकती है।
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टाइम डीके के FAQ's
1) ऑप्शन ट्रेडिंग में टाइम डीके का फायदा किसे होता है ?
ऑप्शन ट्रेडिंग में टाइम डीके का फायदा ऑप्शन राइटर को याने कि, सेलर को होता है।
2) ऑप्शन ट्रेडिंग में टाइम डीके का नुकसान किसे होता है ?
ऑप्शन ट्रेडिंग में टाइम डीके का नुकसान ऑप्शन बायर को याने कि, खरीददार को होता है।
3) टाइम डीके के कारण ऑप्शन के प्रीमियम कब बहुत कम होने लगते हैं ?
एक्सपायरी डेट नजदीक आने पर टाइम डीके के कारण ऑप्शन के प्रीमियम बहुत तेज गति से कम होने लगते हैं।
4) क्या टाइम डीके का असर हर दिन होता है ?
अगर पर्टिकुलर शेयर में या इंडेक्स में ज्यादा बड़े प्राइस मूवमेंट ना बन रहे हो तो टाइम डीके के कारण हर दिन ऑप्शन के प्रीमियम कम होते जाते हैं।
5) टाइम डीके से बचने का आसान तरीका कौन सा है ?
ज्यादा लंबी अवधि के एक्सपायरी डेट के ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट में ट्रेडिंग करके टाइम डीके से बचा जा सकता है। लेकिन इनमें लिक्विडिटी कम होती है।
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