दोस्तों, स्टॉक मार्केट के फ्यूचर्स और ऑप्शंस को डेरिवेटिव्स कहा जाता हैं। क्या हम सभी को डेरिवेटिव्स का मतलब सही में पता है ? "Stock Market Derivatives का मतलब हिंदी में। क्या सच में ?" स्टॉक मार्केट में ऐसी मान्यता है की, फ्यूचर्स और ऑप्शंस के ट्रेडिंग में कामयाबी हासिल करने के लिए डेरिवेटिव्स का मतलब समझना जरूरी होता है।
Stock Market Derivatives In Hindi. |
मेरे दोस्त के भाई, "मिस्टर एस कुमार" जब भी कभी B.A. ग्रेजुएशन के स्टूडेंट से मिलते हैं। तब अक्सर यह कहा करते हैं कि, "B.A. में पास होना बहुत ही आसान होता हैं लेकिन फेल होना बहुत ही मुश्किल होता है।" इसे दोबारा पढ़ते हैं, "B.A. में पास होना बहुत ही आसान होता हैं लेकिन फेल होना बहुत ही मुश्किल होता है।" ठीक इसी तरह स्टॉक मार्केट ऑप्शन ट्रेडिंग के बारे में भी वो कहते हैं कि, "ऑप्शन ट्रेडिंग में प्रॉफिट कमाना आसान होता है लेकिन लॉस करना बहुत ही मुश्किल होता है।"
हम मनुष्यों की बनावट ऐसे हुई है कि, हमें दुनिया की तमाम मुश्किलों को पार करके कामयाबी हासिल करने में बड़ा आनंद आता है। और इसी आनंद को पाने के लिए हम कामयाबी के अपने मकसद को भूलाकर स्टॉक मार्केट ऑप्शन ट्रेडिंग में लॉस पर लॉस करते ही जाते हैं। सही हैं ? और इसी वजह से हम लॉस को अपनी तरफ आकर्षित करते है। इस पर आपका क्या कहना हैं ?
डेरिवेटिव्स का मतलब क्या हैं ?
"डेरिवेटिव्स यह एक फाइनेंसियल टूल है जो कि स्टॉक्स और इंडेक्स के वैल्यू से उत्पन्न होता है।" इसके जरिए हम स्टॉक्स और इंडेक्स के फ्यूचर प्राइस के लिए बेटिंग कर सकते हैं, दाव लगा सकते हैं। आसान भाषा में कहा जाए तो वायदा कर सकते हैं।
"डेरिवेटिव्स यह एक साधन है। इस साधन के उपयोग से हम स्टॉक्स और इंडेक्स के भविष्य की कीमत पर पैसा लगाते हैं।"
डेरिवेटिव्स की असलियत
इस तरह की ट्रेडिंग में हम पैसे बना पाएंगे या नहीं यह उस पर्टिकुलर स्टॉक या ऑप्शन के स्ट्राइक प्राइस पर निर्भर करता है। हम जितना ज्यादा आउट ऑफ मनी में ट्रेडिंग करेंगे उतना हमारे पैसे कमाने की संभावना कम होगी। और इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी को देखते हुए, जितना इन द मनी के निकट ट्रेडिंग करेंगे उतना हमारे पैसे बनाने की संभावना ज्यादा होगी। याने कि यह क्वालिटी के ऊपर डिपेंड करता है।
उदाहरणार्थ
दूध से मक्खन निकालकर घी बनाया जाता हैं। उस घी की मात्रा दूध के क्वालिटी पर डिपेंड होती है। आसान है ? दूध की क्वालिटी जितनी ज्यादा होगी उतनी ज्यादा मात्रा में घी बनेगा।
हम डेरिवेटिव्स में ट्रेडिंग करते हैं याने कि, हम मक्खन ( कॉल और पुट ) में कारोबार करते हैं। हम मक्खन लेते हैं और नजदीकी भविष्य में उसके घी बनने पर दांव लगाते हैं। यह मक्खन जिस दूध से बना है उस दूध की क्वालिटी ( स्ट्राइक प्राइस ) जितनी ज्यादा अच्छी होगी उतना ज्यादा मात्रा में उस मक्खन से घी बनेगा। याने की पैसा बनेगा।
Stock Market Derivatives Types In Hindi. |
इस पर गौर करें कि, जब हम ऑप्शन ट्रेडिंग में कॉल या पुट में पोजीशन लेते हैं तब हम फ्यूचर के प्राइस के लिए बैटिंग करते हैं, दांव लगाते हैं। दांव लगाने के बाद अगर प्राइस अचीव होने लगती है तो हमें मुनाफा होने लगता है। और अगर प्राइस हमारे दांव के खिलाफ जाने लगती है तो हमें लॉस होने लगता है। आसान हैं ?
स्टॉक मार्केट डेरिवेटिव्स क्या हैं ?
स्टॉक मार्केट डेरिवेटिव्स याने की फ्यूचर्स और ऑप्शंस के सौदे होते हैं। इनके जरिए हम स्टॉक्स या इंडेक्स की कीमत नजदीकी भविष्य में कितनी हो सकती है ? इसके बारे में कॉन्ट्रैक्ट बना सकते है।
डेरिवेटिव्स के प्रकार
डेरिवेटिव्स के चार प्रकार होते हैं।
1 ) फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट -
इसमें फॉरवर्ड के कॉन्ट्रैक्ट शामिल होते हैं।
2 ) फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट -
इसमें फ्यूचर्स के कॉन्ट्रैक्ट शामिल होते हैं। एक्सपायरी डेट के अनुसार फ्यूचर्स के तीन प्रकार के कॉन्ट्रैक्ट बनाए जाते हैं।
A ) करंट मंथ कॉन्ट्रैक्ट -
यह कॉन्ट्रैक्ट अभी चल रहे महीने के आखिरी थर्सडे तक के लिए बनाया जाता है।
B ) नेक्स्ट मंथ कॉन्ट्रैक्ट -
यह कॉन्ट्रैक्ट अगले महीने के आखिरी थर्सडे तक के लिए बनाया जाता है।
C ) फार मंथ कॉन्ट्रैक्ट -
यह कॉन्ट्रैक्ट तीसरे महीने के आखिरी थर्सडे तक के लिए बनाया जाता है।
3 ) ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट -
इसमें कॉल और पुट ऑप्शन शामिल होते हैं। इसकी सारी जानकारी ऑप्शन चैन में होती हैं।
4 ) स्वैप कॉन्ट्रैक्ट -
इसमें स्वैप के कॉन्ट्रैक्ट शामिल होते हैं।
डेरिवेटिव्स यह स्टॉक मार्केट के साथ कमोडिटी मार्केट, करेंसी मार्केट में भी अवेलेबल होते हैं। तो यह जानकारी उन सभी के लिए हैं जो इनमें ट्रेडिंग करते हैं। लेकिन यहाँ पर हम, इनमें से ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट पर ज्यादा फोकस करेंगे। ताकि "डेरिवेटिव्स के बारे में अलग नजरिया" आसानी से उभर कर सामने आ पाए।
स्टॉक मार्केट डेरिवेटिव्स के उपयोग
स्टॉक मार्केट में किसी भी इंडेक्स के डेरिवेटिव्स में काम करने के लिए अडवान्सेस डिक्लिनेस को समज़ना उपयुक्त साबित होता हैं। डेरिवेटिव्स के उपयोगों के बारे में हम सभी को पहले से ही मालूम हैं। लेकिन यहाँ पर हम अलग नजरिए के साथ इसके उपयोग जानेंगे। तो चलिए शुरू करते हैं।
डेरिवेटिव्स के बारे में अलग नजरिया 1
पहला नजरिया यह हैं कि, हमें डेरिवेटिव्स में ऑप्शन ट्रेडिंग में पर्टिकुलर स्टॉक या इंडेक्स के अभी चल रही कीमत के आसपास के ट्रेड ही लेने हैं। इससे "ऑप्शन ट्रेडिंग में प्रॉफिट कमाना आसान होता है लेकिन लॉस करना बहुत ही मुश्किल होता है।"
ज्यादा दूर के स्ट्राइक प्राइस पर कॉन्ट्रैक्ट बनाकर, स्टॉक मार्केट में बड़ा मूवमेंट बनने की उम्मीद हमेशा कामयाबी में तब्दील नहीं होती है। इस बात पर हम सभी सहमत हो सकते हैं। और इस बात पर भी की, ज्यादा दूर के ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट बनाकर टाइम डीके की वजह से ज्यादातर बार हमें लॉस उठाना पड़ सकता है।
विशेष बात
डेरिवेटिव्स के ज्यादातर कॉन्ट्रैक्ट्स, स्टॉक्स या इंडेक्स के अभी चल रही नजदीकी कीमत या इन द मनी पर ही होते हैं। ज्यादा दूरी की कीमत पर फ्यूचर्स और ऑप्शंस के सौदे होते हैं लेकिन उनकी मात्रा कम होती है। इस तरह की सारी जानकारी ऑप्शन चैन को देखकर आसानी से ले सकते हैं। ऑप्शन चैन को समज़ने के लिए, Stock Market Option Chain क्या हैं ? यह पढ़ सकते हैं।
डेरिवेटिव्स के बारे में अलग नजरिया 2
दूसरा नजरिया यह हैं कि, हमें डेरिवेटिव्स में ऑप्शन ट्रेडिंग में अभी चल रही एक्सपायरी विक के ट्रेड ही लेने हैं। इससे भी "ऑप्शन ट्रेडिंग में प्रॉफिट कमाना आसान होता है लेकिन लॉस करना बहुत ही मुश्किल होता है।"
क्योंकि जितना ज्यादा दूर के एक्सपायरी डेट के ट्रेड लेंगे उनमें उतना ज्यादा टाइम वैल्यू एडिशन होता है। टाइम वैल्यू एडिशन की वजह से, ज्यादा दूर के एक्सपायरी डेट के ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट की कीमत बहुत ही ज्यादा होती है। और स्टॉक मार्केट में ऊपर की तरफ के या नीचे की तरफ के बड़े मूवमेंट्स होने के बावजूद भी ऐसे कॉन्टैक्ट्स की कीमत ज्यादा बढ़ती नहीं है।
लेकिन कंसोलिडेशन होता है तो ज्यादा दूर के एक्सपायरी डेट के लिए गए कॉन्ट्रैक्ट की कीमत तेजी से घटती जाती है। इस वजह से हमें कई बार लॉस में पोजीशन काटनी पड़ती है। नजदीकी एक्सपायरी डेट के कॉन्ट्रैक्ट में ट्रेडिंग करेंगे तो स्टॉक मार्केट के मूवमेंट के साथ मुनाफा होने की संभावना ज्यादा होती है।
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हमने यह जाना
स्टॉक मार्केट डेरिवेटिव्स यह स्टॉक्स के या इंडेक्स के कीमत पर निकाले जाते हैं। इसके साथ ही इसमें टाइम वैल्यू भी शामिल होती हैं। और हमने यह जाना कि, इसमें स्टॉक की या इंडेक्स की कीमत और टाइम वैल्यू यह महत्वपूर्ण घटक होते है।
इसलिए डेरिवेटिव्स में ट्रेडिंग करके पैसा कमाने के लिए, हमें उस पर्टिकुलर स्टॉक की या इंडेक्स की अभी चल रही कीमत के आसपास के स्ट्राइक प्राइस में ही ट्रेडिंग करनी है। और दूसरी महत्वपूर्ण बात यह हैं कि, टाइम वैल्यू का फायदा उठाना हैं तो हमें अभी चल रही एक्सपायरी विक के लिए ही ट्रेडिंग कॉन्ट्रैक्ट्स बनाने हैं। याने की वायदा करना हैं।
ऐसा करने से "ऑप्शन ट्रेडिंग में प्रॉफिट कमाना आसान होता है लेकिन लॉस करना बहुत ही मुश्किल होता है।" और हम डेरिवेटिव ट्रेडिंग करके अपने लिए पैसा कमा सकते हैं।
Stock Market Derivatives FAQ's
1 ) डेरिवेटिव्स की कीमत कैसे निकाली जाती है ?
डेरिवेटिव्स की कीमत उसके अंडर लेइंग असेट के कीमत के द्वारा निकाली जाती है।
2 ) डेरिवेटिव्स में पोजीशन बनाने का प्रमुख उद्देश्य क्या होता है ?
स्टॉक मार्केट पोर्टफोलियो को हेजिंग करके सुरक्षित रखना। यह डेरिवेटिव्स में पोजीशन बनाने का प्रमुख उद्देश्य होता है।
3 ) क्या हम डेरिवेटिव्स में इंट्राडे ट्रेडिंग कर सकते हैं ?
जी हाँ, फ्यूचर्स और ऑप्शंस में हम इंट्राडे ट्रेडिंग कर सकते हैं।
4 ) डेरिवेटिव्स का सौदा कब तक होल्ड कर सकते हैं ?
डेरिवेटिव्स का सौदा उसके एक्सपायरी डेट तक होल्ड कर सकते हैं।
5 ) डेरिवेटिव्स की एक्सपायरी डेट क्या होती है ?
डेरिवेटिव्स कांट्रैक्ट को पूरा करने के अंतिम तिथि को एक्सपायरी डेट कहा जाता है।
6 ) डेरिवेटिव्स के फ्यूचर्स कांट्रैक्ट की एक्सपायरी कब होती है ?
डेरिवेटिव्स के फ्यूचर्स कांट्रैक्ट की एक्सपायरी हर महीने के आखिरी थर्सडे को होती है।
7 ) डेरिवेटिव्स कांट्रैक्ट का रोलओवर क्यों किया जाता है ?
डेरिवेटिव्स कांट्रैक्ट को अगले एक्सपायरी डेट तक होल्ड करने के लिए रोलओवर किया जाता है।
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