दोस्तों, आज हम यहाँ पर मिलकर, Stock Market Advances, Declines को कैसे समझे ? Advances, Declines का उपयोग कैसे करे ? इन सवालों के आसान और सही जवाब ढूंढने की कोशिश करेंगे। तो आइए शुरू करते हैं।
Stock Market Advances Declines in Hindi. |
और हम यह जानेंगे की, इनका इस्तेमाल करना कितना उपयुक्त हो सकता हैं ? और फिर आगे बढ़कर इनका इस्तेमाल करना है या नहीं, यह फैसला मैं आप पर छोड़ देता हूँ।
एडवांसेस और डिक्लाइन्स क्या होते हैं ?
"एडवांसेस और डिक्लाइन्स याने की चढ़ने वाले शेयर्स की संख्या और गिरने वाले शेयर्स की संख्या।"
Advance Decline Ratio
Advance Decline Ratio = Advances / Declines
Advance Decline Ratio को कैसे समझे ?
1 ) Advance Decline Ratio < 1 याने की एक से कम हो तो गिरने वाले स्टॉक्स का पलड़ा भारी हैं। मतलब संख्याबल के मुताबिक डिक्लाइन्स शेयर्स की स्ट्रेन्थ ज्यादा हैं, यह अनुमान निकलता है।
2 ) Advance Decline Ratio > 1 याने की एक से ज्यादा हो तो बढ़ने वाले स्टॉक्स का पलड़ा भारी हैं। मतलब संख्याबल के अनुसार एडवांसेस शेयर्स की स्ट्रेन्थ ज्यादा हैं, यह अनुमान निकलता है।
3 ) Advance Decline Ratio = 1 याने की एक के बराबर हो तो बढ़ने वाले और गिरने वाले शेयर्स की स्ट्रेन्थ समान हैं, यह अनुमान निकलता है।
इसके जरिए स्टॉक मार्केट में क्या चल रहा हैं ? इसके बारे में लाइव जानकारी, आसान तरीके से हासिल कर सकते हैं। और इस जानकारी का इस्तेमाल करके ट्रेडिंग कर सकते हैं।
Monthly Advance Decline Ratio
एनएसई इंडिया की वेबसाइट पर, मंथली एडवांस और डिक्लाइन रेश्यो को देखने के लिए -
1 ) प्रोडक्ट्स के मेनू में Equities पर CLICK करे।
2 ) Equities में हिस्टोरिकल डाटा पर CLICK करे।
NSE Monthly Advance/Decline Ratio |
3 ) यहाँ पर मंथली एडवांसिंग एंड डिक्लिनिंग ऑफ़ स्टॉक्स यह लिंक मिलेगी। इसपर CLICK करने पर एडवांसेस और डिक्लाइन्स का टेबल आता हैं। इस टेबल में Monthly Advance Decline Ratio उपलब्ध होता हैं।
डेली एडवांसेस और डिक्लाइन्स कहाँ होते हैं ?
डेली बेसिस पर करंट एडवांसेस और डिक्लाइन्स डाटा को देखना यह बहुत ही साधारण तरीका है। इसमें कोई कॉम्प्लिकेटेड कैलकुलेशंस नहीं होते हैं। स्टॉक मार्केट ट्रेडिंग करियर करने वाले ट्रेडर्स एनएसई इंडिया की वेबसाइट का उपयोग करते हैं। हमें भी इसका उपयोग जरूर करना चाहिए।
NSE Advances Declines
एनएसई इंडिया की वेबसाइट पर, इंडेक्स के चार्ट पर एडवांसेस और डिक्लाइन्स की इंफॉर्मेशन होती हैं।
Nifty 50
Nifty 50 chart with Advances and Declines. |
Bank Nifty
Nifty Bank Chart with Advances and Declines |
एडवांसेस और डिक्लाइन्स की उपयुक्तता
"स्टॉक मार्केट में होने वाले रिवर्सल को समझना यह एडवांसेस और डिक्लाइन्स की उपयुक्तता हैं।" अगर हम किसी भी तरह से स्टॉक मार्केट में होने वाले रिवर्सल पैटर्न को समझ पाए तो, हम स्टॉक मार्केट से ठीक ठाक पैसे कमा सकते हैं।
एक ट्रेडर के लिए सबसे बड़ी बात यह होती हैं कि, वह ट्रेडिंग करें। और उसे ट्रेडिंग करने के लिए चाहिए होती है इंफॉर्मेशन। ठीक है ? लेकिन हम हमेशा कॉम्प्लिकेटेड तरीके, स्ट्रेटजी को फॉलो करने की कोशिश करते हैं। और उन में ही उलझ कर रह जाते हैं।
एक प्रसिद्ध एजुकेशनल मूवी में प्रोफेसर कहते हैं, "तो सीधे-सीधे नहीं कह सकते थे ?" तो सामने से जवाब पाते हैं की, "मैंने कोशिश की थी सर, लेकिन आपको सीधा-सीधा पसंद नहीं आया।"
रिवर्सल को समज़ना यह ट्रेंड के बदलाव को समज़ना होता हैं। फुल टाइम ट्रेडर बनने के लिए इससे अधिक क्या जरुरी होता हैं ? एडवांस और डिक्लाइन इसी के लिए उपयोग में आता हैं।
एडवांसेस और डिक्लाइन्स का उपयोग कैसे करे ?
ध्यान रहे इस पद्धति से, इंट्राडे नहीं बल्कि पोजिशनल ट्रेडिंग करना ज्यादा फायदेमंद साबित होता हैं। इस तरह से काम करने के लिए इंडेक्स के साथ कुछ सेक्टर के अच्छे स्टॉक्स को ट्रैक करते रहने हैं। इससे रिवर्सल शुरू होते ही पोजीशन बनाना शुरू कर सकते है।
A ) बायिंग पोजीशन बनाना
स्टॉक मार्केट में गिरावट के बाद रिवर्सल पैटर्न बनने लगता है। एडवांस डिक्लाइन के हिसाब से गिरने वाले शेयर्स की संख्या कम हो रही हो और बढ़ने वाले शेयरों की संख्या बढ़ रही हो तो हम जल्दी ही इस रिवर्सल को महसूस कर सकते हैं। ऐसे में तीन स्टेप्स में बायिंग पोजीशन बनानी चाहिए।
1 ) बायिंग पोजीशन की शुरुआत
अब मार्केट में तेजी बन रही हैं। ऐसी सिचुएशन में हमें कैलकुलेटेड रिस्क लेकर, "बॉटम फिशिंग स्ट्रेटेजी" के साथ थोड़ी पोजीशन बना लेनी चाहिए।
और हम एक बड़ा कॉल लेकर उसके अगेंस्ट में एक छोटा पुट ऑप्शन लेकर भी पोजीशन बना सकते हैं। अगर हम गलत साबित हो गए तो भी कॉल में जो नुकसान होगा उसकी भरपाई पुट ऑप्शन के द्वारा हो सकती हैं। ठीक हैं ?
2 ) बायिंग पोजीशन में एवरेजिंग
ट्रेड सही नहीं बैठा तो पोजीशन क्लोज करो। और अगर ट्रेड सही बैठा तो, बढ़ते हुए मार्केट में शेयर्स में एवरेज बायिंग करनी हैं। ऑप्शंस में ट्रेडिंग करनी हो तो, कॉल ऑप्शन में लॉट की क्वांटिटी बढ़ानी है। ऐसा नहीं है कि, यहां पर हमें अंदाजे से ही बायिंग करनी है।
हम यहां पर खरीददारी शुरू करने के लिए डे हाई के ऊपर बायिंग आर्डर लगा सकते हैं। इससे चल रही तेजी में हमारी पोजीशन बन जाएगी। और उस दिन के लो प्राइस के नीचे का स्टॉप लॉस लगा सकते हैं।
3 ) बायिंग पोजीशन को होल्ड करना
बनाई हुई पोजीशन को स्टॉप लॉस लगाकर होल्ड करना होता हैं। गुणी ट्रेडर्स को यह बताने की जरूरत नहीं हैं। लेकिन बढ़ते प्रॉफिट में ट्रेलिंग स्टॉप लॉस का उपयोग करना, एक कला हैं। इससे हम अपने कैपिटल के साथ कुछ प्रॉफिट भी सेफ कर सकते है।
अगला रिवर्सल शुरू होने के संकेत मिलने पर हमें प्रॉफिट बुकिंग करते हुए अपनी बायिंग पोजीशन क्लोज करनी चाहिए।
B ) सेलिंग पोजीशन बनाना
स्टॉक मार्केट में तेजी के बाद रिवर्सल पैटर्न बनने लगता है। एडवांस डिक्लाइन के हिसाब से बढ़ने वाले शेयर्स की संख्या कम हो रही हो और गिरने वाले शेयरों की संख्या बढ़ रही हो तो हम जल्दी ही इस रिवर्सल को महसूस कर सकते हैं।
1 ) सेलिंग पोजीशन की शुरुआत
अब मार्केट में मंदी बन रही हैं। ऐसी सिचुएशन में हमें कैलकुलेटेड रिस्क लेकर, "सेल ऑन टॉप स्ट्रेटेजी" के साथ थोड़ी शॉर्ट सेलिंग पोजीशन बना लेनी चाहिए। ऐसी पोजिशंस फ्यूचर्स और ऑप्शंस में बनाई जाती हैं।
और हम एक बड़ा पुट लेकर उसके अगेंस्ट में एक छोटा कॉल ऑप्शन लेकर भी पोजीशन बना सकते हैं। अगर हम गलत साबित हो गए तो भी पुट में हुए नुकसान की भरपाई कॉल ऑप्शन के द्वारा हो सकती हैं। ठीक हैं ?
2 ) सेलिंग पोजीशन में एवरेजिंग
ट्रेड सही नहीं बैठा तो पोजीशन क्लोज करो। और अगर ट्रेड सही बैठा तो, गिरते मार्केट में फ्यूचर्स में और ज्यादा सेलिंग करनी हैं। या पुट ऑप्शन में लॉट की क्वांटिटी बढ़ानी है। ऐसा नहीं है कि, यहां पर हमें अंदाजे से ही बायिंग करनी है।
गुड न्यूज़
अगर आप ऑप्शन ट्रेडिंग में टाइम डीके से बचना चाहते हैं तो, टाइम डीके पर सोल्यूशन क्या है ? यह जानकारी आपके लिए है।
हम यहां पर पुट ऑप्शन में खरीददारी शुरू करने के लिए, अंडेरलेइंग इंडेक्स या शेयर्स के डे लो के निचे पुट बायिंग आर्डर लगा सकते हैं। इससे चल रही गिरावट में हमारी पोजीशन बन जाएगी। और अंडेरलेइंग इंडेक्स या शेयर्स के उस दिन के हाई प्राइस के ऊपर का स्टॉप लॉस लगा सकते हैं।
3 ) सेलिंग पोजीशन को होल्ड करना
बनाई हुई पोजीशन को स्टॉप लॉस लगाकर होल्ड करना होता हैं। इसमें फ्यूचर्स सेलिंग और पुट बायिंग की पोजिशंस को, 30% तक के बड़े स्टॉप लॉस लगाने होते हैं। बढ़ते प्रॉफिट में स्टॉप लॉस ट्रेल करना चाहिए। इससे हम अपने कैपिटल के साथ कुछ प्रॉफिट भी सेफ कर सकते है।
अगला रिवर्सल शुरू होने के संकेत मिलने पर हमें प्रॉफिट बुकिंग करते हुए अपनी फ्यूचर्स सेलिंग और पुट बायिंग की पोजीशन क्लोज करनी चाहिए।
अधिक जानकारी
ऑप्शन चैन की Implied Volatility ( IV ) का मतलब क्या होता हैं ?
Stock Market Derivatives का मतलब हिंदी में। क्या सच में ?
Option Chain के Volume को कैसे समझे ?
Stock Market के सन्दर्भ में लिक्विडिटी का अर्थ क्या होता हैं ? तरल मनी।
एडवांसेस और डिक्लाइन्स के बारे में हमने यह जाना
रिवर्सल सबसे पहले बड़े इंडेक्स में आता है। सबसे पहले बड़े स्टॉक्स में रिवर्सल बनने लगता है। उसके बाद में मिड कैप स्टॉक्स रिवर्सल को फॉलो करते हैं और उनमें बढ़त या गिरावट आना शुरू होता हैं। और सबसे लास्ट में स्मॉल कैप के शेयर्स में रिवर्सल बनता है। कभी-कभी बड़े स्टॉक्स के साथ छोटे स्टॉक्स भी दौड़ शुरू कर देते हैं।
रिवर्सल को पकड़ने की कोशिशों में अगर थोडासा नुकसान हो भी जाता है तो भी डरने की कोई बात नहीं है। क्योंकि दो बार, तीन बार इस तरह से कोशिश करने के बाद रिवर्सल का मूव हमारे पकड़ में आने ही वाला होता है। और हम ट्रेडर्स हैं तो इतनी रिस्क तो बनती ही है। सही हैं ?
लेकिन दिक्कत यह होती हैं कि, हममें से ज्यादातर ट्रेडर्स किसी भी प्रोसेस को बीच में ही छोड़ देते हैं और कुछ अलग तरीका ढूंढने की कोशिश करते हैं। एडवांसेस और डिक्लाइन्स के आधार पर ट्रेडिंग करने की प्रोसेस को दो बार तीन बार करने से और रिवर्सल ना पकड़ पाने से हुए नुकसान को, हम एक रिवर्सल को सही से पकड़कर आसानी से पूरा कर सकते हैं। और हम इस प्रोसेस में एक्सपर्ट बन सकते हैं।
0 Comments