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ऑप्शन चैन की Implied Volatility ( IV ) का मतलब क्या होता हैं ?

दोस्तों, आज हम यहां पर मिलकर, ऑप्शन चैन की Implied Volatility ( IV ) का मतलब क्या होता हैं ? ऑप्शन चैन में इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी कहां पर दिखाई देती है ? ऑप्शन चैन की इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी का फार्मूला क्या है ? ऑप्शन चैन के इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी के उपयोग क्या है ? और ऑप्शन चैन की इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी को हिंदी में कैसे समझे ? इसके बारे में जानकारी लेंगे। तो आइए शुरू करते हैं। 

Stock Market In Hindi. Option Chain's Implied Volatility.
 Option Chain's Implied Volatility.


निफ़्टी, बैंक निफ़्टी और किसी भी शेयर्स के ऑप्शंस ट्रेडिंग में, इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी का बहुत बड़ा रोल होता हैं। इसके बारे में यहां पर विस्तार से समझ लेते हैं।

     

    इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी ( IV ) क्या होती हैं ? 

    Implied Volatility ( IV ) in Hindi.

    इम्प्लॉइड यह शब्द, Imply से बना है। "Imply का हिंदी में मतलब सूचित करना, दर्शाना, अंतर्निहित होना यह निकलता है। और इम्प्लॉइड का मतलब सूचित की गई, दर्शाई गई, निहित की गई ऐसा निकलता है।" 

                "वोलैटिलिटी याने की, उतार-चढ़ाव, परिवर्तनशीलता।" ठीक है ? इन दोन शब्दों को मिलाकर बनाए गए "इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी का मतलब सूचित की गई परिवर्तनशीलता यह निकलता हैं।" 

                ऑप्शन चैन में इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी के द्वारा पर्टिकुलर स्ट्राइक प्राइस के ऑप्शंस की परिवर्तनशीलता सूचित की जाती है। 

    "1 साल के समय में किसी शेयर की या इंडेक्स की पर्टिकुलर स्ट्राइक प्राइस कितना ऊपर और नीचे की तरफ जा सकती है। इसके कैलकुलेशन को इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी कहते हैं।" इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी के नंबर को देखकर, स्ट्राइक प्राइस में कितना ऊपर का और नीचे का मूवमेंट हो सकता है ? इसका अंदाजा लगा सकते हैं। 

                हम इस बात पर सहमत हो सकते हैं कि, हर एक इंडेक्स का और हर एक शेअर का अपना एक अलग ही नेचर होता हैं। एक्ट और रिएक्ट करने का एक अलग अंदाज होता हैं। सही है ? कुछ शेयर ऐसे होते हैं जोकि इंडेक्स तेज गति से बढ़ रहा हो तो यह धीरे-धीरे बढ़ेंगे और अगर इंडेक्स तेज गति से गिर रहा हो तो यह धीरे-धीरे गिरेंगे। कुछ शेयर ऐसे होते हैं जो की इंडेक्स से भी तेज गति से चढ़ते और गिरते हैं। यह जानकारी हम स्टॉक मार्केट अडवान्सेस डिक्लिनेस देखकर ले सकते हैं।  

                जो शेयर्स इंडेक्स के तुलना में कम गति से एक्शन करते हैं उन्हें लो बिटा स्टॉक्स कहते हैं। और जो इंडेक्स के तुलना में ज्यादा गति से एक्शन करते हैं वह उन्हें हाई बिटा स्टॉक्स कहते हैं। और यह सब होता है उनमें चल रही वोलैटिलिटी की वजह से। ठीक है ? 

                लो बिटा स्टॉक्स में अगर लंबी अवधि के लिए बड़ा निवेश करते हैं तो हमें ज्यादा टेंशन नहीं रहेगा। लेकिन हम इन शेयर्स को ऑप्शन ट्रेडिंग के लिए चुनते हैं तो दिक्कत हो जाएगी। क्योंकि इनमें वोलैटिलिटी बहुत कम होने के कारण ओपन इंटरेस्ट में ज्यादा बदलाव नहीं होते हैं। और ऑप्शन के प्रीमियम भी ज्यादा बढ़ते नहीं हैं। 

                हाय बिटा स्टॉक में निवेश करने के लिए चुनेंगे तो ज्यादा वोलैटिलिटी के कारण टेंशन बढ़ सकता है। लेकिन ऑप्शन ट्रेडिंग के लिए इनका सिलेक्शन करेंगे तो हम इनमें ट्रेडिंग करके अच्छा मुनाफा बना सकते हैं। 

                ठीक इसी प्रकार से, ऑप्शन ट्रेडिंग में शेयर्स चुनने के लिए और उनमें किन स्ट्राइक प्राइस पर ट्रेड करना है ? इस बारे में डिसीजन लेने के लिए इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी का इस्तेमाल होता है। 


    इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी ( IV ) को कहाँ देखें ?

    जब हम एनईसी की वेबसाइट खोलते हैं। और वहां पर किसी भी इंडेक्स या शेयर की ऑप्शन चैन देखते हैं। इसमें कॉल साइड और पुट साइड दोनों तरफ, वॉल्यूम और एलटीपी कॉलम के बीच में IV का कॉलम होता है। 

    NSE Option Chain Implied Volatility (IV) in Hindi.
    NSE Option Chain Implied Volatility (IV) in Hindi.



    इस इमेज में यलो कलर के बॉक्स में इन्हे दिखाया हैं। इन में इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी दिखाई जाती हैं। ध्यान दें की यह कॉलम, कॉल साइड और पुट साइड दोनों तरफ होते है। 


    इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी ( IV ) का फॉर्मूला 

    यहाँ पर दो फॉर्मूले उपलब्ध किए हैं। परस्थितियों की हिसाब से इनका इस्तेमाल किया जाता हैं। 

    Option Chain Implied Volatility (IV) Formula
    Option Chain Implied Volatility (IV) Formula.


    इन फॉर्मूलों को अच्छे से समज़ने के बाद हम NSE की वेबसाइट से रेडीमेड डाटा हासिल कर सकते हैं। हमें कैलकुलेशन करना नहीं पड़ता। तसल्ली के साथ इन्हे समज़ने के लिए, यह बात पहले ही बताई हैं। तो चलिए शुरू करते हैं। 

    1 ) IV Rank

    IV Rank = Today's IV - IV's  Low / IV's High - IV's Low ×100 

    उदाहरण 

    पिछले 1 साल में IV का लो 15 हैं और हाई 60 हैं। और आज की IV 40 हैं। तो IV की रेंज 60 - 15 = 45 निकलती हैं। आज की IV 40 हैं यह लो वैल्यू से 25 पॉइंट्स ज्यादा हैं। ऐसे में IV Rank इस तरह से निकालते हैं। 


    IV Rank = 40 - 15 / 60 - 15 ×100 

    IV Rank = 55 %

                इसका यह मतलब निकलता हैं की IV अपने हाई और लो की रेंज के 55 % की पोजीशन पर हैं। यानि के यहाँ पर IV Rank से यह पता चलता हैं की, इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी रेंज से ज्यादा हैं। 

    IV Rank = 100 % का मतलब IV नए हाई पर हैं। 

    IV Rank = 0 % का मतलब IV नए लो पर हैं। 


                विशेष परस्थितियों में IV Rank सही रिजल्ट नहीं दिखता हैं। जैसे की, पुरे साल IV 15 के करीब रहती हैं और पिछले एक दिन में बड़ा मूवमेंट आकर यह 60 होती है। और आज के दिन की IV थोड़ी कम होकर 40 आती हैं तो भी आज की IV Rank 55 % वैल्यू शो करेगी। यह आंकड़ों का कैलकुलेशन वास्तव में सही साबित नहीं होता हैं। क्योकि सालभर का एवरेज 15 हैं और एक दिन की वोलैटिलिटी के कारण यह वैल्यू निकलकर आ रही हैं। 

     

    2 ) IV Percentile 

    ऐसी परिस्थितियों में IV को इस फॉर्मूले से समज़ते हैं। इससे पिक्चर और ज्यादा क्लियर होती हैं। 

    IV Percentile = पुरे साल के न्यूनतम IV के दिन / 365 × 100 

    उदाहरण 

    आसानी से समज़ने के लिए ऊपर के उदाहरण के आंकड़े लेते हैं। यहाँ विशेष परस्थिति में, पिछले 1 साल में IV का एवरेज 15 हैं और पिछले दिन का IV 60 हैं। और आज की IV 40 हैं। ऐसे में IV Percentile इस तरह से निकालते हैं। 

    IV Percentile = पुरे साल के न्यूनतम IV के दिन / 365 × 100 

    IV Percentile = 364 / 365 × 100 

    = 99.50 % 

                इससे हमें पता चलता हैं की, आज की तुलना में पिछले साल भर में कितने प्रतिशत दिन, IV की वैल्यू कम थी। इसे और एक बार समज़ते हैं। साल के दिनों के हिसाब से IV की वैल्यू की एवरेज कितने दिन कम रही हैं इससे आज की IV से तुलना की जाती हैं। 


    इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी ( IV ) को कैसे समझे ?

    दोस्तों, जब हम एनएसई की वेबसाइट पर जाते हैं। वहां पर ऑप्शन चेंज देखते हैं। उसमे जो IV दिखाई जाती हैं वह सालाना कैलकुलेशन के आधार पर निकाली हुई होती है। यानी के ऑप्शन चैन में दिखाई गई इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी यह, पिछले 1 साल के कैलकुलेशन से निकलती है। 

                इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी का इस्तेमाल हम इस संभावना का अंदाजा लगाने के लिए कर सकते हैं कि, स्ट्राइक प्राइस कितना ऊपर और कितना नीचे जा सकती है। बस इतना ही। इससे हम दिशा का पता नहीं लगा सकते सिर्फ ऊपर की और नीचे की रेंज का अंदाजा लगा सकते हैं। 

                IV के आंकड़े, प्रीवियस डाटा और करंट डाटा के आधार पर आते हैं। इसके साथ ही आगे होने वाले इवेंट के कारण भी शेयर्स में उठा-पटक होती हैं। इसलिए नजदीकी फ्यूचर में आने वाले, कुछ दिनों में होने वाले इवेंट्स का इंपैक्ट भी इनमें शामिल होता है। 


    इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी ( IV ) के उपयोग

    इसका उपयोग ऑप्शन ट्रेडिंग के दोनों प्रकारो में किया जाता हैं। 

    1 ) ऑप्शन बायिंग में IV का उपयोग 

    जैसा की हमने IV क्या हैं ? में समझा हैं की, हाई बीटा याने की ज्यादा वोलैटिलिटी वाले शेयर्स के ऑप्शन के प्रीमियम ज्यादा होते हैं। इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी भी ज्यादा होती हैं। और इनमें दोनों तरफ के बड़े बदलाव हो रहे होते हैं। 

                इनमें ज्यादा बड़े मूव आने की संभावना बहुत ज्यादा होती हैं। ऐसे शेयर्स के प्रीमियम ज्यादा बढ़ते हैं। इसलिए IV को ट्रैक करते हुए ऐसे शेयर्स के ऑप्शंस में बायिंग के सौदे बना सकते हैं। 

    2 ) ऑप्शन राइटिंग (शॉर्ट सेलिंग)  में IV का उपयोग 

    लो बीटा याने की कम वोलैटिलिटी वाले शेयर्स के ऑप्शन के प्रीमियम लो होते हैं। इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी भी लो होती हैं। और इनमें कुछ ज्यादा बदलाव नहीं हो रहे होते हैं। 

                इसका मतलब यह निकल कर आता है कि, इनमें ज्यादा बड़े मूव आने की संभावना बहुत कम हैं। ऐसे शेयर्स के प्रीमियम ज्यादा गिरते हैं। इसलिए IV को ट्रैक करते हुए ऐसे शेयर्स के ऑप्शंस को राइट कर सकते हैं। 

                दोस्तों, हमें इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी के नंबर्स डेली बेसिस पर देखना होता हैं। एट द मनी स्ट्राइक प्राइस के नजदीकी स्ट्राइक प्राइसेज की IV को डेली बेसिस पर देखकर, इन में क्या बदलाव हो रहे हैं यह समझना होता हैं। 

                इन बदलावों को महसूस करके, हमें यह जानकारी मिलती हैं कि, जिन स्ट्राइक प्राइजेस में इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी बढ़ रही है उनमें बड़ा मोमेंट आने की संभावना होती है। चाहे वह किसी भी दिशा में हो, हम यहां से बड़े मूवमेंट का अंदाजा लगा सकते हैं। और फिर बाकी टेक्निकल एनालिसिस करके ट्रेडिंग आईडिया निकाल सकते हैं। 


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    इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी ( IV ) के बारे में हमने यह जाना 

    आज हमने यहां पर मिलकर यह जाना कि, ऑप्शन चैन में IV के कॉलम में पर्टिकुलर स्ट्राइक प्राइस के कॉल और पुट की इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी दिखाई जाती है। 

                इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी ज्यादा होने का मतलब यह होता है कि, इनमें बड़ा मूवमेंट आने वाला हैं। और इसके कम होने का मतलब यह होता है कि, इनमें बड़ा मूवमेंट आने की संभावना बहुत कम है। 

                IV के अनुसार जिन शेयर्स में बड़ा मुंह आने की संभावना ज्यादा है उनके ऑप्शन में हम ट्रेडिंग के लिए बाइंग कर सकते हैं। IV को फॉलो करते हुए ट्रेडिंग स्ट्रेटजी बनाने के लिए, हमें स्टॉक मार्केट को बारीकी से ट्रैक करते रहना होता हैं। 


    Implied Volatility FAQ's

    1 ) ऑप्शन चैन में इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी क्या होती है ?

    चैन की इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी यह पर्टिकुलर स्टॉक के या इंडेक्स के स्ट्राइक प्राइस की फोरकास्ट की गई परिवर्तनशीलता होती है।

    2 ) ऑप्शन चैन में इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी को सूचित क्यों किया जाता है ?

    ऑप्शन चैन में अलग-अलग स्ट्राइक प्राइस पर चल रहे कारोबार की एक्टिविटी को लाइव मार्केट में समझने के लिए इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी को सूचित किया जाता है।

    3 ) ऑप्शन चैन की इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी बढ़ने से क्या होता है ?

    ऑप्शन चैन की इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी बढ़ने से ऑप्शंस के प्रीमियम बढ़ते हैं।

    4 ) ऑप्शन चैन की इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी कम होने पर क्या होता है ?

    ऑप्शन चैन की इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी कम होने पर ऑप्शन की कीमत कम होने लगती है। प्रीमियम घटने लगते हैं।

    5 ) ऑप्शन चैन की सामान्य इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी कितनी होती है ?

    ऑप्शन चैन की सामान्य इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी 20% से 30% तक होती है।


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